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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन(EVM) क्या होती हैं ?
EVM एक तरह की मशीन हैं जिसका Full Form Electronic Voting Machine होता हैं इसकी मदद से कोई भी मतदाता अपना कीमती मत किसी भी राजनीतिक पार्टी को डाल सकता हैं इस मशीन में हर किसी पार्टी के लिए अलग-अलग बटन दिए होते हैं जिस पर उन पार्टियों के चुनाव चिन्ह लगे होते हैं इन बटनों को दबाकर ही मतदाता अपनी पार्टी चुनता हैं |
EVM मशीन की संरचना
EVM मशीन को बहुत ही सरल रूप में तैयार किया गया हैं जिसका उपयोग करने में उसके कंट्रोलर और मतदाता को कोई दिक्कत नही होती है | EVM मशीन के दो भाग होते हैं मतदाता इकाई(Polling unit) और नियन्त्रण इकाई (Control unit) ।
इन दोनों यूनिट को पांच मीटर लंबे फाइबर के तार से जोड़ा जाता हैं । कंट्रोल यूनिट को पीठासीन अधिकारी या मतदाता अधिकारी के पास रखा जाता हैं, जबकि पोलिंग यूनिट को मतदातों के मत डालने के लिए वोटिंग कंपार्टमेंट के अंदर ही रखा जाता हैं । जिससे कि मतदान अधिकारी आपकी पहचान कर सके ।
मत पत्र जारी करने के अलावा मतदाता अधिकारी को बैलेट बटन को दबाना होता हैं जिसके बाद मतदाता को अपना वोट डालने की अनुमति मिलती हैं । ईवीएम मशीन पर उम्मीदवारों के नाम या चुनाव चिन्ह होते हैं, जिसके बराबर में नीले रंग के बटन होते हैं जिसे दबाकर मतदाता अपने पसन्द के उम्मीदवार को चुन सकता हैं ।
ईवीएम सामान्य रूप से बैटरी पर चलती हैं जिनको चलाने के लिए बिजली की आवयश्कता नहीं होती हैं । एक ईवीएम मशीन में 2000 वोट रिकॉर्ड किए जा सकते हैं । यदि अचानक कोई भी ईवीएम काम करना बंद कर देती हैं तो उसके स्थान पर नई ईवीएम का उपयोग किया जाता हैं । जबकि खराब हुई मशीन में दर्ज किए गए वोट कंट्रोल यूनिट में सुरक्षित रहते हैं ।
कंट्रोल यूनिट दर्ज किए गए वोट को तब तक स्टोर करके रखती हैं जब तक सभी डाटा डिलीट या रिसेट न हो जाये । मतदान केंद्रों पर पेपर रोल करने की सख्ती से मनाही होती हैं ।
ऐसा रहा हैं ईवीएम(EVM) का इतिहास
source : indiatimes.comभारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में कई वर्षो तक बैलेट पेपर पर चुनाव कराए जाते थे लेकिन यह बहुत ही मंहंगे, धीमें और अपारदर्शी हुआ करते थे । जिसकी वजह से चुनाव आयोग को ईवीएम मशीन का इस्तेमाल करना पड़ा ।
भारत में ईवीएम का अविष्कार साल 1980 में एम.बी.हनीफा ने किया था लेकिन जनता ने पहली बार इस मशीन को तमिलनाडु के छह शहरों में आयोजित होने वाली सरकारी प्रदर्शनी में देखा था इसके बाद से ही चुनाव आयोग ने इस मशीन को उपयोग करने पर मन बना लिया ।
साल 1989 में Election Commission of India ने Electronics Corporation of india और Bharat Electronics Limited की मदद से पहली बार EVM बनाने की शुरुवात की । इसको ओर सटीक बनाने के लिए Industrial Designer Centre, IIT Bombay ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
भारत में पहली बार 1998 में 16 विधानसभा चुनाव सीटों के लिए ईवीएम का इस्तेमाल किया गया । जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के 6, राजस्थान के 5 और मधयप्रदेश के 5 शहर शामिल थे । साल 2004 में लोकसभा के चुनाव पहली बार ईवीएम मशीन पर कराए गए उस वक्त 17.5 लाख मशीन का इस्तेमाल किया गया । इसके बाद से ही सभी छोटे-बड़े चुनाव ईवीएम
पर कराएं जाते हैं।
कहाँ-कहाँ Ban हैं EVM
America
Germany
Netherlands
England
Italy
Ireland
France
कहाँ-कहाँ use होती हैं EVM
India
Nepal
Brazil
Philippines
Jordan
Belgium
Bhutan
Egypt
Estonia
Venezuela
Maldives
United Arab Emirates (UAE)
इन 10 बिंदुओं से जाने ईवीएम और बैलट पेपर में अंतर
1. जैसा कि आप जानते हैं कि सबसे अधिक आबादी के मामले में भारत दूसरे स्थान पर आता हैं यदि बैलट पेपर पर चुनाव कराएं जाते, तो इसके लिए बहुत अधिक पेपर की आवश्यकता होगी जो हमारे पर्यावरण के लिए उचित नहीं हैं ।
2.EVM मशीन की सबसे अच्छी बात यह हैं कि इसका संचालन सरल और गड़बड़ी करना मुश्किल होता हैं और सबसे मजेदार बात यह हैं कि इसकी इसी अच्छाई पर सवाल भी उठते रहे हैं ।
3.चुनाव के समय बैलट पेपर सिस्टम में यदि स्टाम्प ठीक से नहीं लगता हैं तो इसे असामान्य वोट के तौर पर गिना जाता हैं लेकिन ईवीएम में इस तरह की कोई गुंजाइश नही होती हैं ।
4.बैलट पेपर की तुलना में EVM से परिणाम जल्दी प्राप्त किये जाते हैं ।
5.जब बैलट पेपर से चुनाव कराए जाते थे तो राजनीतिक दल अपने पक्ष में परिणाम दिलाने के लिए बाहुबल का उपयोग किया करते थे किसी-किसी जगह तो हिंसा की स्थिति भी पैदा हो जाती थी ।
6.किसी भी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का एक सीरियल नंबर होता हैं चुनाव आयोग ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डाटाबेस की मदद से पता लगा सकता हैं कोई भी मशीन आखिर कहां हैं ।
7.साल 2017 में चुनाव आयोग ने ईवीएम मशीन को हैक करने की खुली छूट थी इसमें लंदन के साइबर एक्सपर्ट्स सैयद सूजा ने वीडियो कॉलिंग की मदद से दावा किया था कि वह इस मशीन को हैक कर सकते हैं । हालाकिं बाद में उनकी बात अवैध साबित हुई और वह मशीन को हैक नही कर सके ।
8.साल 1990 में जब इन मशीनों को खरीदा गया था तो उस वक्त इनकी कीमत 5500 प्रति मशीन हुआ करती थी शुरुवाती दौर में यह थोड़ी महंगी पड़ती थी लेकिन बैलट पेपर की तुलना में यह cost effective और long life होती हैं ।
9. ईवीएम का computer और interne से कोई लेना देना नही होता हैं जिसकी वजह से इसको हैक नही किया जा सकता है ।
10.EVM की मदद से डाले गए वोटों को 3-5 घंटे में गिना जा सकता हैं लेकिन बैलट पेपर से वोटों की गिनती में 40 घंटे से अधिक का समय लगता था । एक रिसर्च में सामने आया हैं कि ईवीएम के इस्तेमाल से चुनावी घोटालों में कमी आयी हैं जिससे लोकतंत्र को फायदा मिला हैं ।
EVM की क्षमता
ईवीएम साधारण बैटरी से चलती हैं जिसकी वजह से इसे एक जगह से दूसरे जगह पर आसानी से लाया जा सकता हैं । और इसमें करंट लगने की संभावना भी न के बराबर होती हैं ।
चुनाव आयोग की ओर से ईवीएम में अधिकतम 3840 वोट डालने की व्यवस्था की गई और वही अधिकतम 64 उम्मीदवारों को शामिल किया गया हैं एक ईवीएम में 16 उम्मीदवार के नाम दर्ज रहते हैं यदि उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती हैं तो evm की संख्या को बढ़ा भी दिया जाता हैं । लेकिन उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक हो जाती हैं तो वहां पर बैलट पेपर का इस्तेमाल होता हैं ।
VVPAT मशीन क्या हैं ?
VVPAT की full form, Voter Verifiable Paper Audit Trail होती हैं, ईवीएम के साथ लगी इस मशीन की मदद से मतदान करने के बाद एक पर्ची प्राप्त होती हैं । जो कि वोटर को दी जाती हैं जिसमें उस उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिन्ह दर्ज होता हैं जिसको मतदाता ने अपना वोट दिया हैं । मतदान करने के बाद यह पर्ची आपको vvpat मशीन पर
लगे शीशे पर 7 सेकंड दिखाई देती हैं । इसके बाद यह सील बॉक्स में गिर जाएगी ।
VVPAT मशीन को Bharat Electronics Limited और Electronic Corporation ने साल 2013 में डिज़ाइन किया था सबसे पहले इस मशीन का इस्तेमाल साल 2013 में नागालैंड के नोकसेन विधानसभा के लिए किया गया था ।
यह हैं सख्त नियम
अगर किसी भी मतदाता को VVPAT मशीन पर जरा भी संदेह होता हैं तो भारतीय चुनाव आयोग ने एक नियम बताया हैं जिसके तहत यदि कोई भी मतदाता यह कहता हैं कि उसने जिस उम्मीदवार को वोट दिया हैं उसका नाम और चुनाव चिन्ह प्राप्त पर्ची से नही मिलता हैं तो उसके लिए मतदाता को एक घोषणा पत्र भरकर देना होता हैं जिसकी जांच की जाती हैं यदि दावा गलत किया गया हैं तो उस व्यक्ति को 6 महीने की जेल या एक हज़ार रुपये का जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं ।